बिहार में दाखिल खारिज के मामलों की संख्या अब 45.53 लाख तक पहुंच गई है। इस बढ़ती समस्या को देखते हुए सरकार ने कुछ महत्वपूर्ण आदेश जारी किए हैं।
सरकार ने कहा है कि इन लंबित मामलों को जल्दी निपटाने के लिए खास कदम उठाए जाएंगे। इसके तहत, अदालतों में अतिरिक्त कर्मचारियों की नियुक्ति की जाएगी और वकीलों तथा न्यायाधीशों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाए जाएंगे। ताकि मामलों की सुनवाई तेजी से हो सके और न्याय का काम जल्दी हो।
इसके अलावा, लंबित मामलों की स्थिति को नियमित रूप से जांचा जाएगा ताकि यह पता चल सके कि कितनी प्रगति हुई है। सरकार ने यह भी आदेश दिया है कि अदालतों के मामलों की ताजा स्थिति को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सार्वजनिक किया जाए। इससे नागरिक भी अपने मामलों की प्रगति को आसानी से देख सकेंगे और निगरानी कर सकेंगे।
इन सभी कदमों का उद्देश्य यह है कि अदालतों में काम का बोझ कम हो और लोगों को जल्दी और सही न्याय मिल सके।
आवेदक का पक्ष सुने बिना ही मामला नहीं होगा खारिज
किसी भी न्यायिक मामले में अगर आवेदक का पक्ष सुने बिना ही मामला खारिज कर दिया जाता है, तो यह न्याय की बुनियादी प्रक्रिया का उल्लंघन माना जाता है। अदालत का यह कर्तव्य है कि वह हर पक्ष को सुने और उनकी बातों को अच्छी तरह से समझे।
अगर ऐसा नहीं किया जाता और फैसला जल्दबाज़ी में लिया जाता है, तो न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल उठ सकता है। अदालत को चाहिए कि सुनवाई से पहले हर पक्ष की स्थिति, तर्क, और दलीलों को ध्यान में रखे ताकि कोई भी निर्णय निष्पक्ष और संतुलित हो सके। अगर आवेदक का पक्ष सुने बिना मामला खारिज कर दिया जाता है, तो यह न्यायिक प्रणाली के मूल सिद्धांतों के खिलाफ होता है और इस फैसले को अपील के ज़रिए चुनौती दी जा सकती है।
उच्च न्यायालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर पक्ष को समान मौका दिया जाए और उनकी पूरी सुनवाई की जाए, ताकि न्यायसंगत और उचित निर्णय लिया जा सके।
FAQs
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